बघाट रियासत (सोलन) के अंतिम राजा दुर्गा सिंह ने पहाड़ी रियासतों को भारतीय गणतंत्र में विलय के लिए मुख्य भूमिका निभाई थी। हिमाचल को राज्य का दर्जा दिलाने का श्रेय भले ही डॉ. यशवंत सिंह परमार मिला लेकिन इसकी पहल भी बघाट के अंतिम राजा दुर्गा सिंह की अध्यक्षता वाले प्रजामंडल नेताओं ने की थी।
हिमाचल प्रदेश की भारतीय इतिहास संकलन समिति द्वारा जुटाए गए तथ्यों पर गौर करें तो हिमाचल इतिहास के कई रोचक तथ्य सामने आते हैं। भारतीय इतिहास संकलन समिति के अनुसार राजा दुर्गा सिंह ने शिक्षा के प्रचारक रहे हैं। 15 सितंबर 1901 को जन्में राजा दुर्गा सिंह की गणतंत्र में गहरी आस्था थी यही कारण है उन्होंने पहाड़ी राजाओं को भारतीय गंणतंत्र में विलय के लिए प्रेरित किया।
भारतीय इतिहास संकलन समिति के अनुसार जब भारत को स्वतंत्रता मिली तो शिमला की पहाड़ी रियासतों का विलय भारतीय गणतंत्र में नहीं हुआ था। 26 जनवरी, 1948 को शिमला की सभी रियासतों के प्रजामंडल के नेताओं की बैठक राजा दुर्गा सिंह ने सोलन में बुलाई।
26 रियासतों के प्रतिनिधियों ने इसमें भाग लिया। जिसमें सत्यदेव बुशहरी, ठाकुर सेन नेगी, लाला देवकीनंदन और विरजानंद (बुशहर से), जुब्बल से भागमल सोहटा और सालिगराम टेजटा, क्योंथल से दवीराम केवला और विजय राम, धामी से पं. संतराम, ठियोग से सूरतराम, बाघल से हीरासिंह पाल, महलोग से चिंतामणि आदि प्रजामंडल नेताओं ने भाग लिया।
इसके संयोजक राजा दुर्गा सिंह ने सर्वप्रथम तिरंगा फहराया और बघाट की पुलिस ने झंडे को सलामी दी। इसके कॉन्फ्रेंस हॉल में अधिवेशन शुरू हुआ और सभा को संविधान सभा का नाम दिया गया। इसमें राजा साहब को अध्यक्ष और महावीर सिंह (आईसीएस) को सचिव चुना गया।
सभा में निर्णय लिया गया कि सभी रियासतों को मिलाकर हिमाचल प्रदेश का नाम दिया जाए। इसके बाद गृहमंत्री सरदार पटेल से निवेदन किया गया कि पंजाब हिल स्टेट की दूसरी रियासतों को भी इनके साथ विलय करके हिमाचल प्रदेश को पूरा प्रांत बनाया जाए।
अंतत: देशी राज्य संबंधी महासचिव वीपी मेनन की मध्यस्थता व सरदार पटेल के निर्देश पर शिमला हिल स्टेट्स व पंजाब हिल स्टेट्स की पहाड़ी रियासतों के विलय से 15 अप्रैल, 1948 को हिमाचल प्रदेश अस्तित्व में आया जो बघाट के राजा दुर्गा सिंह व प्रजामंडल के अन्य नेताओं के प्रयासों से संभव हुआ।
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